भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु के शोधकर्ताओं ने चंद्रमा पर उपयोग के लिए ईंटों की मरम्मत हेतु एक नवीन बैक्टीरिया-आधारित तकनीक विकसित की है। यह तकनीक चंद्रमा के कठोर वातावरण में क्षतिग्रस्त ईंटों की मरम्मत करके उनकी मजबूती बहाल करने में सक्षम है।

तकनीक का विवरण:
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बैक्टीरिया का उपयोग: शोधकर्ताओं ने Sporosarcina pasteurii नामक बैक्टीरिया का उपयोग किया, जो यूरिया को कैल्शियम कार्बोनेट में परिवर्तित करता है। यह कैल्शियम कार्बोनेट ईंटों की दरारों को भरकर उनकी संरचनात्मक अखंडता को पुनर्स्थापित करता है।
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मिश्रण की संरचना: इस मरम्मत मिश्रण में Sporosarcina pasteurii बैक्टीरिया, ग्वार गोंद, और चंद्र मिट्टी के समान पदार्थ (लूनर सॉयल सिमुलेंट) शामिल हैं। यह मिश्रण दरारों में डालने पर बैक्टीरिया सक्रिय होकर कैल्शियम कार्बोनेट उत्पन्न करता है, जो ईंटों की मजबूती को बहाल करता है।
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सिन्टरिंग प्रक्रिया: शोधकर्ताओं ने सिन्टरिंग नामक प्रक्रिया का भी उपयोग किया, जिसमें मिट्टी के मिश्रण को उच्च तापमान पर गर्म करके मजबूत ईंटें बनाई जाती हैं। यह प्रक्रिया ईंटों को चंद्रमा के कठोर तापमान परिवर्तन सहने में सक्षम बनाती है।
चंद्रमा पर निर्माण के लिए संभावित लाभ:
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स्थानीय संसाधनों का उपयोग: यह तकनीक चंद्रमा पर उपलब्ध मिट्टी का उपयोग करके निर्माण सामग्री तैयार करने में मदद करती है, जिससे पृथ्वी से सामग्री ले जाने की आवश्यकता कम होती है।
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संरचनाओं की दीर्घायु: बैक्टीरिया-आधारित मरम्मत से ईंटों की मजबूती बढ़ती है, जिससे चंद्रमा पर निर्मित संरचनाओं की आयु लंबी होती है और मरम्मत की आवश्यकता कम होती है।
यह तकनीक भविष्य में चंद्रमा पर स्थायी मानव बस्तियों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जिससे वहां की संरचनाएं अधिक टिकाऊ और सुरक्षित बन सकेंगी।
IISc वैज्ञानिकों की नई खोज: बैक्टीरिया से अंतरिक्ष ईंटों की मरम्मत
भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है, जिससे अंतरिक्ष में इस्तेमाल होने वाली ईंटों की दरारों को आसानी से भरा जा सकता है। यह तकनीक एक विशेष बैक्टीरिया, Sporosarcina pasteurii, का उपयोग करती है, जो ईंटों की मरम्मत करने और उन्हें अधिक मजबूत बनाने में सहायक है।
तकनीक की विशेषताएँ
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यह बैक्टीरिया प्राकृतिक रूप से कैल्शियम कार्बोनेट उत्पन्न करता है, जो ईंटों की दरारों को भरने में मदद करता है।
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इससे न केवल मरम्मत होती है, बल्कि ईंटें पहले से भी ज्यादा मजबूत हो जाती हैं।
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यह तकनीक अत्यधिक तापमान और सौर विकिरण के प्रभावों का सामना कर सकती है, जिससे यह चंद्रमा और अन्य ग्रहों के कठोर वातावरण में प्रभावी रहेगी।
गगनयान मिशन से जुड़ाव
IISc के वैज्ञानिक इस बैक्टीरिया को गगनयान मिशन के तहत अंतरिक्ष में भेजने की योजना बना रहे हैं। इस मिशन के दौरान बैक्टीरिया की प्रभावशीलता का परीक्षण किया जाएगा, जिससे यह पता चलेगा कि यह तकनीक शून्य गुरुत्वाकर्षण और अंतरिक्ष के अन्य प्रभावों के तहत कितनी प्रभावी होगी।
भविष्य में संभावनाएँ
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यह तकनीक चंद्रमा और मंगल पर स्थायी मानव बस्तियों के निर्माण में उपयोगी हो सकती है।
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भविष्य में, अंतरिक्ष में निर्माण कार्यों के दौरान यह एक कम लागत और पर्यावरण-अनुकूल समाधान साबित हो सकता है।
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इस तकनीक से भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान को एक नई दिशा मिलेगी, जिससे स्वदेशी नवाचारों को बढ़ावा मिलेगा।
IISc की यह खोज न केवल भारत के अंतरिक्ष मिशनों को मजबूती देगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक अनूठा और टिकाऊ समाधान प्रदान कर सकती है।
भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु: एक संपूर्ण परिचय
स्थापना और प्रारंभिक इतिहास

भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) की स्थापना 1909 में हुई थी। इसकी स्थापना टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा, मैसूर के महाराजा कृष्णराज वोडेयार IV, और ब्रिटिश प्रशासक लॉर्ड कर्ज़न के संयुक्त प्रयासों से हुई। जमशेदजी टाटा का सपना था कि भारत में वैज्ञानिक और तकनीकी अनुसंधान के लिए एक उत्कृष्ट केंद्र हो, जो देश की औद्योगिक और तकनीकी उन्नति में सहायक बने।
For More Inormation – https://iisc.ac.in/
संस्थान की आधारशिला मैसूर राज्य के महाराजा ने रखी और इसे बेंगलुरु में स्थापित किया गया, जो अपने अनुकूल मौसम और शांत वातावरण के कारण शोध के लिए उपयुक्त था।
शैक्षणिक और शोध गतिविधियाँ
IISc मुख्य रूप से वैज्ञानिक अनुसंधान और उच्च शिक्षा पर केंद्रित है। यह संस्थान इंजीनियरिंग, विज्ञान, डिजाइन और प्रबंधन से जुड़े कई पाठ्यक्रम संचालित करता है। प्रमुख क्षेत्रों में शामिल हैं:
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भौतिकी, गणित और कंप्यूटर विज्ञान
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जैविक विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी
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रासायनिक विज्ञान और नैनो टेक्नोलॉजी
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इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग
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पर्यावरण और जलवायु अध्ययन
IISc को अपने उन्नत शोध प्रयोगशालाओं और उच्च स्तरीय अनुसंधान के लिए जाना जाता है। संस्थान में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शोध परियोजनाएँ चलती हैं।
तकनीकी और औद्योगिक योगदान
IISc ने भारत के वैज्ञानिक और औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ:
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अंतरिक्ष और रक्षा अनुसंधान: DRDO और ISRO के कई वैज्ञानिक IISc के पूर्व छात्र रहे हैं।
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स्वदेशी सुपरकंप्यूटर निर्माण: IISc ने कई उच्च प्रदर्शन कंप्यूटरों के विकास में सहायता की है।
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जैव प्रौद्योगिकी और चिकित्सा विज्ञान: संस्थान ने भारत में वैक्सीन रिसर्च और जैव प्रौद्योगिकी में योगदान दिया है।
नवीनतम प्रगति और उपलब्धियाँ
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IISc ने हाल ही में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स और क्वांटम कंप्यूटिंग में नए शोध कार्यक्रम शुरू किए हैं।
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2022 में IISc को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत “इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस” का दर्जा मिला।
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IISc में प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र (Technology Innovation Hub) स्थापित किए गए हैं, जो स्टार्टअप्स और उद्योगों को सहयोग प्रदान कर रहे हैं।
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राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन के तहत IISc ने एक नया सुपरकंप्यूटर “PARAM Pravega” विकसित किया।
IISc का वैश्विक दर्जा और मान्यता
IISc को दुनिया के शीर्ष अनुसंधान संस्थानों में गिना जाता है। इसे QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग और NIRF रैंकिंग में भारत का सर्वश्रेष्ठ संस्थान माना गया है।
निष्कर्ष
भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु, विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान में भारत का गौरव है। इस संस्थान ने देश के वैज्ञानिक, तकनीकी और औद्योगिक विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया है और यह आगे भी भारत की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा।
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