“ISRO के आदित्य एल1 का ऐतिहासिक कारनामा! SUIT टेलिस्कोप ने पहली बार सौर ज्वाला को कैप्चर किया

ISRO के आदित्य एल1 ने पहली बार सौर ज्वाला को कैप्चर किया – SUIT टेलिस्कोप की ऐतिहासिक उपलब्धि!

SUIT – सौर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (Solar Ultraviolet Imaging Telescope)

28 फरवरी 2025 को इसरो (ISRO) ने घोषणा की कि SUIT ने एक सौर विस्फोट (Solar Flare) की अब तक की सबसे विस्तृत छवियां कैद की हैं।

22 फरवरी 2024 को SUIT द्वारा कैप्चर की गई X6.3-क्लास सौर फ्लेयर की निकट-अल्ट्रावायलेट (NUV) छवि, जिसमें सूर्य के निचले वायुमंडल में चमक देखी जा सकती है।
आदित्य-L1 मिशन के सौर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT) द्वारा 22 फरवरी 2024 को ली गई सूर्य के X6.3-क्लास सौर फ्लेयर की ऐतिहासिक छवि।

22 फरवरी 2024 को SUIT ने X6.3-क्लास सौर फ्लेयर को रिकॉर्ड किया, जो सौर विस्फोटों की सबसे तीव्र श्रेणियों में से एक है।
👉 यह पहली बार था जब किसी उपकरण ने सौर विस्फोट के ‘कर्नेल’ (मुख्य भाग) की छवियां सूर्य के निचले वायुमंडल (फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर) में नियर-अल्ट्रावायलेट (NUV) तरंगदैर्घ्य में कैप्चर कीं।
👉 यह खोज सौर विस्फोटों की जटिल भौतिकी को समझने में मदद करेगी।
     For More Information : https://www.isro.gov.in/

पिछला महत्वपूर्ण अपडेट:
8 दिसंबर 2023 को इसरो ने बताया कि SUIT ने पहली बार 200-400 nm तरंगदैर्घ्य में सूर्य की संपूर्ण डिस्क की छवियां लीं।
👉 इन छवियों में सनस्पॉट्स (सूर्य धब्बे), प्लाज, और शांत सौर क्षेत्र जैसी महत्वपूर्ण विशेषताएं देखी गईं।
👉 इस खोज ने सूर्य के फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर की सूक्ष्म जानकारी प्रदान की।

आदित्य-एल 1 मिशन की संपूर्ण जानकारी

मिशन का उद्देश्य

आदित्य-एल1 भारत का पहला सौर मिशन है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य सूर्य का अध्ययन करना और उसकी गतिविधियों को समझना है, विशेष रूप से सौर हवाओं, सौर कोरोना और सौर विस्फोटों (फ्लेयर) का प्रभाव पृथ्वी और अंतरिक्ष वातावरण पर समझना।

प्रक्षेपण और स्थान

  • प्रक्षेपण तिथि: 2 सितंबर 2023
  • रॉकेट: पीएसएलवी-सी57 (PSLV-C57)
  • लॉन्च साइट: सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा
  • गंतव्य: L1 लैग्रेंज बिंदु (लगभग 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर, पृथ्वी और सूर्य के बीच)
  • समय: लगभग 127 दिन (4 महीने) में अपने गंतव्य तक पहुंचा

प्रमुख वैज्ञानिक उद्देश्य

  1. सौर कोरोना (Corona) का अध्ययन – सूर्य का ऊपरी वायुमंडल, जिसका तापमान लाखों डिग्री सेल्सियस होता है।
  2. सौर हवाओं (Solar Winds) की निगरानी – ये आवेशित कण पृथ्वी और सौरमंडल पर प्रभाव डालते हैं।
  3. सौर तूफानों (Solar Storms) और उनकी पृथ्वी पर प्रभाव का अध्ययन
  4. मैग्नेटोहाइड्रोडायनामिक्स (MHD) प्रक्रियाओं को समझना – सूर्य की गतिविधियों से संबंधित प्रक्रियाएं।
  5. सौर उत्सर्जन और किरणों (X-ray, UV rays) का निरीक्षण

मुख्य उपकरण (Payloads) और उनकी भूमिकाएं

सौर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT) का आरेख, जिसमें इसके विभिन्न घटक जैसे डिटेक्टर असेंबली, प्राथमिक दर्पण असेंबली, फ़िल्टर व्हील असेंबली, और अन्य भाग लेबल किए गए हैं।
आदित्य-L1 मिशन के सौर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT) का विस्तृत संरचनात्मक आरेख, जो सूर्य की पराबैंगनी इमेजिंग में सहायक है।

 

आदित्य-एल1 में 7 वैज्ञानिक उपकरण हैं, जो सूर्य के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करेंगे:

  1. Visible Emission Line Coronagraph (VELC)
    • सूर्य के कोरोना की गतिशीलता और तापमान परिवर्तन को मापेगा।
  2. Solar Ultraviolet Imaging Telescope (SUIT)
    • सूर्य के फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर की UV रेंज में इमेजिंग करेगा।
  3. Aditya Solar wind Particle Experiment (ASPEX)
    • सौर हवाओं और उनके कणों की प्रकृति का अध्ययन करेगा।
  4. Plasma Analyser Package for Aditya (PAPA)
    • सौर हवाओं में प्लाज्मा और ऊर्जावान कणों का विश्लेषण करेगा।
  5. Solar Low Energy X-ray Spectrometer (SoLEXS)
    • सौर एक्स-रे उत्सर्जन को मापेगा।
  6. High Energy L1 Orbiting X-ray Spectrometer (HEL1OS)
    • उच्च ऊर्जा वाले एक्स-रे उत्सर्जन को रिकॉर्ड करेगा।
  7. Magnetometer
    • सौर चुंबकीय क्षेत्र की विशेषताओं का अध्ययन करेगा।

L1 (लग्रांजियन पॉइंट 1) का महत्व

  • L1 बिंदु पृथ्वी और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के बीच स्थित है, जिससे यह सूर्य के सीधे सामने स्थायी रूप से रह सकता है।
  • यहां से सूर्य का लगातार अध्ययन किया जा सकता है, बिना किसी ग्रहण के बाधा के।

महत्व और लाभ

भारत का पहला सौर वेधशाला मिशन जो सूर्य के विस्तृत अध्ययन में मदद करेगा।
✅ सौर गतिविधियों की निगरानी से अंतरिक्ष मौसम (Space Weather) की भविष्यवाणी करने में मदद मिलेगी।
✅ उपग्रहों, बिजली ग्रिड और जीपीएस संचार पर पड़ने वाले सौर तूफानों के प्रभाव को समझा जा सकेगा।
✅ सूर्य की कोरोना परत का अध्ययन वैज्ञानिकों को सौर ऊर्जा और सौर भौतिकी के रहस्यों को समझने में सहायता करेगा।

मिशन की वर्तमान स्थिति (मार्च 2025 तक)

  • आदित्य-एल1 सफलतापूर्वक L1 बिंदु पर स्थापित हो चुका है।
  • SUIT (Solar Ultraviolet Imaging Telescope) और अन्य पेलोड्स ने सूर्य की इमेजिंग शुरू कर दी है।
  • पहली बार सूर्य की पूर्ण डिस्क इमेज कैप्चर की गई है।
  • वैज्ञानिक डेटा का विश्लेषण जारी है, जिससे अंतरिक्ष और पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी मिलेगी।

भविष्य की संभावनाएं

  • यह मिशन भविष्य में अंतरिक्ष अन्वेषण और सूर्य संबंधी अनुसंधान में नई संभावनाएं खोलेगा।
  • इस मिशन से प्राप्त डेटा का उपयोग चंद्रयान, गगनयान और मंगलयान जैसे मिशनों में भी किया जा सकता है

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का संपूर्ण इतिहास

परिचय

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का आधिकारिक लोगो, जिसमें नारंगी और नीले रंग में इसरो लिखा हुआ है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का आधिकारिक लोगो।

 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भारत की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी है। इसका मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को विकसित करना और राष्ट्रीय विकास के लिए उसका उपयोग करना है।

  • पूरा नाम: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation – ISRO)
  • स्थापना: 15 अगस्त 1969
  • मुख्यालय: बेंगलुरु, कर्नाटक
  • संस्थापक: डॉ. विक्रम साराभाई
  • प्रबंधन: इसरो भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग (Department of Space) के अंतर्गत आता है और प्रधानमंत्री के अधीन कार्य करता है।

इसरो की स्थापना और विकास

भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान की शुरुआत 1962 में हुई, जब भारत सरकार ने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) का गठन किया। इस पहल का नेतृत्व डॉ. विक्रम साराभाई ने किया, जिन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जाता है।

1969 में INCOSPAR को पुनर्गठित कर ISRO की स्थापना की गई, ताकि भारत का अपना स्वतंत्र अंतरिक्ष कार्यक्रम विकसित किया जा सके।

1972 में, भारत सरकार ने अंतरिक्ष विभाग (Department of Space) की स्थापना की और इसरो को इसके अंतर्गत लाया गया।


मुख्य मिशन और उपलब्धियां

1. आरंभिक उपग्रह और प्रक्षेपण यान
  • आर्यभट्ट (1975): भारत का पहला उपग्रह, जिसे रूस (सोवियत संघ) से लॉन्च किया गया था।
  • भास्कर-1 (1979): पृथ्वी अवलोकन उपग्रह।
  • रोहिणी-1 (1980): भारत द्वारा अपने स्वयं के प्रक्षेपण यान SLV-3 से प्रक्षेपित पहला उपग्रह।
2. प्रमुख प्रक्षेपण यान (Rockets) विकास
  • SLV (Satellite Launch Vehicle): भारत का पहला स्वदेशी प्रक्षेपण यान।
  • ASLV (Augmented Satellite Launch Vehicle): ज्यादा भार ले जाने में सक्षम अगला संस्करण।
  • PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle – 1994): यह भारत का सबसे सफल रॉकेट है, जिसने कई उपग्रह प्रक्षेपण किए हैं।
  • GSLV (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle – 2001): बड़े संचार उपग्रहों के लिए विकसित किया गया।
  • GSLV Mk III (LVM-3 – 2014): सबसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान, जिसे चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 के लिए उपयोग किया गया।

3. प्रमुख अंतरिक्ष मिशन
चंद्र मिशन
  • चंद्रयान-1 (2008): चंद्रमा की सतह पर जल अणुओं की उपस्थिति की खोज की।
  • चंद्रयान-2 (2019): ऑर्बिटर सफल रहा, लेकिन लैंडर ‘विक्रम’ क्रैश हो गया।
  • चंद्रयान-3 (2023): भारत का पहला सफल चंद्र लैंडिंग मिशन, जिसने दक्षिणी ध्रुव पर उतरने का रिकॉर्ड बनाया।
मंगल मिशन
  • मंगलयान (Mars Orbiter Mission – 2013): भारत का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन, जो पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में प्रवेश करने वाला विश्व का पहला देश बना।

सूर्य मिशन

  • आदित्य-L1 (2023): सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत का पहला मिशन।

मानव अंतरिक्ष मिशन (Gaganyaan)

  • गगनयान (2025 प्रस्तावित): भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन, जिसमें तीन अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की कक्षा में भेजा जाएगा।

4. इसरो के अन्य प्रमुख कार्य

संचार और नेविगेशन उपग्रह

  • INSAT सीरीज: मौसम और संचार सेवाओं के लिए।
  • GSAT सीरीज: संचार उपग्रह।
  • NAVIC: भारत की अपनी GPS प्रणाली।

रक्षा और पर्यवेक्षण

  • RISAT: निगरानी और रक्षा उद्देश्यों के लिए रडार इमेजिंग उपग्रह।
  • Cartosat: पृथ्वी की उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग के लिए।

5. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग

  • नासा (NASA): निसार मिशन (NISAR) में सहयोग।
  • रूस (Roscosmos): गगनयान मिशन में सहयोग।
  • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA): कई उपग्रह मिशनों में साझेदारी।
  • फ्रांस (CNES): पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों के विकास में सहयोग।

6. इसरो के वर्तमान अध्यक्ष और मुख्यालय
  • वर्तमान अध्यक्ष: डॉ. एस. सोमनाथ (2022 से)
  • मुख्यालय: बेंगलुरु, कर्नाटक

7. भविष्य की योजनाएँ और मिशन
  • गगनयान (2025): पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन।
  • शुक्रयान-1 (2028 प्रस्तावित): शुक्र ग्रह का अध्ययन करने वाला मिशन।
  • चंद्रयान-4: चंद्रमा से नमूने वापस लाने की योजना।

निष्कर्ष

इसरो ने 1969 से लेकर अब तक विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। सीमित बजट में भी इसरो ने कई महत्वपूर्ण मिशन पूरे किए हैं, जिससे भारत अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभरा है। आने वाले वर्षों में, गगनयान और शुक्रयान जैसे मिशन भारत को वैश्विक अंतरिक्ष मानचित्र में और ऊँचाइयों पर ले जाने में मदद करेंगे।

Current Affairs से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए https://currentafffairs.com/  पर जाएँ।

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